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Devlopment of Computer

Introduction : Devlopment of Computer

अबेकस (The Abacus):

यह एक प्राचीन गणना यंत्र हैं जिसका आविष्कार 16वी. शताब्दी के प्राचीन बेबीलोन (Babylon) में अंको की गणना के लिए किया गया था।

इसे संसार का प्रथम गणक यंत्र कहा जाता है। इसमें तारों (Wires) में गोलाकार मनके (Beads) पिरोयी जाती है जिसकी सहायता से गणना को आसान बनाया गया।

डिफरेंसइंजन (Difference Engine) और एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine):

ब्रिटिश गणितज्ञ चार्ल्सबैबेज (Charles Babbage) ने 1822 में डिफरेंस इंजन का आविष्कार (Invention) किया जो भाप से चलता था तथा गणनांए कर सकता था।

1842 में चार्ल्स बैबेज ने एक स्वचालित मशीन एनालिटिकल इंजन बनाया जो पंचकार्ड के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य करता था

तथा मूल भूत अंकगणितीय गणनाएं (जोड़, घटाना, गुणा, भाग) कर सकता था।

लेडि एडा आगस्टा/लव लेस (Ada Augusta/Love Lace):

एडा आगस्टा  ने एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) में पहला प्रोग्राम डाला। अतःउन्हें दुनिया का प्रथम प्रोग्रामर (Programmer) भी कहा जाता है ।

उन्हें दो अंको की संख्या प्रणाली बाइनरी प्रणाली (Binary System) के आविष्कार का श्रेय भी है।

एनिएक ENIAC (Electronic Numerical Integrator and Computer):

1949 में अमेरिकी वैज्ञानिक जे.पी. एकर्ट (J.P Eckert) तथा जाँन मुचली (John Mauchly) ने सामान्य कार्यों के लिए प्रथम पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक (Fully Electronic) कम्प्यूटर का आविष्कार किया जिसे एनिएक नाम दिया गया।

Generation of Electronic Computer:

पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर (First Generation Computer) (1942-1955)

  • इसमें निर्वात ट्यूब (Vacuum Tubes) का प्रयोग किया गया।
  • इनमें मशीन भाषा (Machine Language) का प्रयोग किया गया।
  • ये आकार में बड़े (Bulky) और अधिक ऊर्जा खपत करने वाले थे।

दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Second Generation Computers) (1955-64)

  • निर्वात ट्यूब की जगह ट्रांजिस्टर (Transistor) का प्रयोग किया गया जो हल्के, छोटे और कम विद्युत खपत करने वाले थे।
  • इनकी गति तीव्र और त्रुटियां कम थी।

तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Third Generation Computers) (1964-1975)

  • ट्रांजिस्टर की जगह IC (Integrated Circuit) का प्रयोग शुरू हुआ जिसमें सैकड़ों इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे ट्रांजिस्टर, प्रतिरोध (Resister) और संधारित्र (Capacitor) एक छोटे चिप पर बने होते है।
  • प्रारंभ में SSI (Small Scale Integration) और बाद में MSI (Medium Scale Integration) का प्रयोग किया गया।
  • इस पीढ़ी के कम्प्यूटर हल्के, कम खर्चीले तथा तीव्र थे और अधिक विश्वसनीय थे।

चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Fourth Generation Computers) (1975-1989)

  • एलएसआई (LSI- Large Scale Integration) तथा वीएलएस आई (VLSI- Very Large Scale Integration) चिप तथा माइक्रो प्रोसेसर के विकास से कम्प्यूटर के आकार में कमी तथा क्षमता में वृद्धि हुई।
  • माइक्रो प्रोसेसर का विकास मार्सिअन होफ (Marcian Hoff) ने 1971 में किया । इससे व्यक्तिगत कम्प्यूटर (Personal Computer) का विकास हुआ।
  • चुम्बकीय डिस्क और टेप का स्थान अर्धचालक (Semiconductor) मेमोरी ने ले लिया। रैम (RAM) की क्षमता में वृद्धि से कार्य अत्यंत तीव्र हो गया।

पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर (Fifth Generation Computers) (1989-अब तक)

  • यूएलएसआई (ULSI- Ultra Large Scale Integration) के विकास से करोड़ो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चिप पर लगाया जा सका। आप्टिकल डिस्क (Optical Disk) जैसी सीडी के विकास ने भंडारण क्षेत्र में क्रान्ति ला दी।
    • नेटवर्किंग के क्षेत्र में इंटरनेट (Internet), ई-मेल (Email) तथा डब्लू डब्लू डब्लू (www- world wide web), Super Computer का विकास हुआ।

अगली पीढ़ी के कम्प्यूटर (Next Generation Computer):

नैनो कम्प्यूटर (Nano Computer): नैनो ट्यूब्स जिनका व्यास 1 नैनो मीटर (1×109”मी.) तक हो सकता है, के प्रयोग से अत्यंत छोटे व विशाल क्षमता वाले कम्प्यूटर के विकास की परिकल्पना की गई हैं।

कवाटम कम्प्यूटर (Quantum Computer):

विद्युतीय किरणों में ऊर्जा इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण होती है। ये इलेक्ट्रॉन अपने कक्ष में तेजी सें भ्रमण करते हैं। इस कारण इन्हे एक साथ 1 और 0 की स्थिति में गिना जा सकता है ॥ इस क्षमता का इस्तेमाल कर मानव मस्तिष्क से भी तेज कार्य करने वाले कम्प्यूटर के विकास का प्रयास चल रहा है।

डी एन ए कम्प्यूटर DNA (Deoxyribonucleic Acid) Computer:

डीएनए अणुओं में छिपी तमाम सूचनाओं को एकत्रित करने और विभिन्न रोगों का इलाज करने के

उद्देश्य से बिगल इंस्टीट्यूट ऑफ इजराइल के प्रोफेसर यहूद सपीरो और साथी वैज्ञानिकों ने एक अति सूक्ष्म डीएनए कम्प्यूटर बनाया है।

ये कम्प्यूटर इतने सूक्ष्म हैं कि लगभग एक अरब डीएनए कम्प्यूटर एक टेस्ट ट्यूब में समा सकते है। इन कम्प्यूटरों की सहायता से एक अरब ऑपरेशन एक साथ ही किया जा सकता है।

और वह भी करीब 99.8 प्रतिशत सफलता के साथ। यह विश्व का पहला ऐसा प्रोग्रामयुक्त कम्प्युटिंग मशीन हैं, जिसके इनपुट, आउटपुट और साफ्टवेयर और यहां तक की हार्डवेयर भी जैविक अणुओं से तैयार किए गए है।

इसका प्रयोग काफी सरल है। भविष्य में इसकी मदद से इसे मानव कोशिकाओं के अंदर रखकर ऑपरेशन किया जा सकता है लेकिन इन कम्प्यूटरों को अकेले चलाना संभव नहीं हो सकता।

डीएनए के दो घुमावदार अणुओं में, जिनमें मानव जीन सुरक्षित रहते है, चार रासायनिक तत्व मौजूद होते है।

इन तत्वों को ए (एडनिन), टी (थाइमिन), सी (साइटोसिन), और जी (ग्वानिन) कहा जाता है। ये तत्व डीएनए अणुओं में प्रोटीन बनाने का काम करते हैं तथा इनमें स्मरण शक्ति काफी अधिक होती है।

 इस कम्प्यूटर में आकड़े दो अणुओं में सुरक्षित रहते हैं और इसके साथ दो एंजाइम हार्डवेयर का काम करते है जो सूचनाओं के कोड को पढ़ने और कॉपी करने का काम करते हैं।

इन सबको जब एक टेस्ट ट्यूब में रखा जाता है तब सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर इनपुट अणु के रूप में कार्य करता है और फाइनल ऑउटपुट निकलता है।

इस डीएनए कंम्प्यूटर में ऊर्जा की खपत काफी कम होती है, फलस्वरूप इसे मानवकोशिकाओं के अंदर रखने पर कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है।

कम्प्यूटर का वर्गीकरण (Classification of Computer):

अलग – अलग आधार पर कम्प्यूटर को अलग अलग भागों में विभाजित किया गया है।

A. आकार के आधार पर

B. कार्य के आधार पर

C. उद्देश्य के आधार पर

A. आकार के आधार परः

आकार के आधार पर कम्प्यूटर को चार भागों में विभाजित किया गया है।

1. Micro Computer

2. Mini Computer

3. Mainframe Computer

4. Super Computer

भारत में सुपर कम्प्यूटर (Super Computer in India)

भारत में परम सीरीज के सुपर कम्प्यूटर (परम 8000) का निर्माण सी-डैक (C-DAC-Centre for Development of Advanced Computing) पुणे द्वारा 1991 में किया गया।

इसकी गणना क्षमता 100 गीगा फ्लाप यानि 1 खरब गणना प्रति सेकण्ड थी। इसके निर्माण का श्रेय सी-डैक (C-DAC) के निर्देशक विजय भास्कर को जाता है।

सी-डैक ने ‘परम पद्म’ (Param Padam) नाम से भी सुपर कम्प्यूटर का विकास किया है। इस तरह के सुपर कम्प्यूटर विश्व के कुल दस देशों-अमेरिका, जापान, चीन, इजराइल और भारत आदि के पास ही उपलब्ध है।

अनुपम’ सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास बार्क (BARC- Bhabha Atomic Research Center), मुम्बई द्वारा जबकि ‘पेस’ (Pace) सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास डीआरडीओ (DRDO- Defence Research And Development Oraganisation), हैदराबाद द्वारा किया गया।

भारत के सुपर कम्प्यूटर ‘फ्लोसाल्वर (Flow Solver) का विकास नाल (NAL- National Aeronautics Lab) बंग्लुरू द्वारा किया गया।

B. कार्य के आधार परः कार्य के आधार पर कम्प्यूटर को तीन भागों में विभाजित किया गया है।

1. Analog Computer

2. Digital Computer

3. Hybrid Computer

C. उद्देश्य के आधार परः

1. General Purpose Computer

2. Special Purpose Computer

Note :- Micro Computer को सुविधा के आधार पर निम्न भागों में विभाजित किया गया हैं।

1. Desktop Computer

2. Laptop Computer

3. Palmtop Computer/PDA (Personal Digital Assistant)