ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
पैसा तो बस जीने के लिए होता है
हँसने के लिए तो हमेशा दोस्त की
जरुरत पड़ती है
दम नहीं किसी में की मिटा सके हमारी दोस्ती को
जंग तलवारों को लगता है जिगरी यार को नहीं
न जाने कौन सी दौलत है कुछ दोस्तों के लफ्जों में
बात करते हैं तो दिल ही खरीद लेते हैं