दौलताबाद किला: इतिहास की वो अजेय गढ़ी जिसे जीतना था नामुमकिन
दौलताबाद किला: इतिहास की वो अजेय गढ़ी जिसे जीतना था नामुमकिन
दौलताबाद किला : महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 13 किमी दूर स्थित अजेय गढ़,
भारत के सबसे अभेद्य और रणनीतिक किलों में से एक है।
यह किला अपनी भूल-भुलैया, गुप्त मार्ग और खतरनाक रक्षा प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है,
जिसने अलाउद्दीन खिलजी से लेकर औरंगजेब तक को चुनौती दी।
आइए जानते हैं इस किले का रोचक इतिहास, वास्तुकला और वो राज जो इसे अजेय बनाते हैं।
दौलताबाद किला: नामकरण और इतिहास

इस किले का मूल नाम देवगिरि (देवताओं का पहाड़) था,
जिसे यादव वंश ने 12वीं शताब्दी में बनवाया।
1327 में दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे जीतकर अपनी राजधानी बनाया
नाम बदलकर “दौलताबाद” (भाग्य का शहर) रख दिया।
उसने दिल्ली की पूरी आबादी को जबरन यहाँ बसाने की कोशिश की,
लेकिन यह योजना विफल रही।
क्यों था यह किला अजेय? 5 खास वजहें
भूल-भुलैया और गुप्त मार्ग:
किले के अंदर छिपे हुए रास्ते और जालीदार दरवाजे थे,
जो दुश्मनों को गुमराह कर देते थे।
आक्रमणकारी अंदर तो घुस जाते,
लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पाता था!
काली मिट्टी से बना खाई का पानी:
किले के चारों ओर 30 मीटर गहरी खाई थी,
जिसमें काली चिपचिपी मिट्टी मिला हुआ पानी भरा रहता था।
यह दुश्मनों के हाथी-घोड़ों को फंसा देता था।
अंधेरे में छिपे हत्यारे मोर्चे:
किले की दीवारों में छिपे हुए तीरंदाजों के छेद बने थे,
जो अचानक हमला कर देते थे।

धधकते तेल की बौछार:
दुश्मनों को रोकने के लिए दरवाजों पर गर्म तेल डाला जाता था।
600 फीट ऊँची चट्टान पर बना किला:
किले तक पहुँचने के लिए संकरे और घुमावदार रास्ते बनाए गए थे,
जिससे दुश्मनों की सेना एक साथ नहीं चढ़ पाती थी।
किले की वास्तुकला के मुख्य आकर्षण
चांद मीनार: 64 मीटर ऊँची यह मीनार कुतुब मीनार से प्रेरित है।
हाथी की सूंड जैसा प्रवेश द्वार: शत्रुओं को रोकने के लिए बनाया गया।
भीमा बुर्ज: विशाल तोप जिसे “भीमा की मूसल” कहा जाता है।
बारादरी: यादव कालीन सुंदर महल।
अंधेरी गुफाएँ: कैदियों को रखने के लिए बनी थीं।
रोचक तथ्य

औरंगजेब ने अपने अंतिम दिन इसी किले में कैद होकर बिताए।
किले के नीचे 4 किमी लंबी सुरंग है, जो अभी तक पूरी तरह खोजी नहीं गई।
शिवाजी महाराज ने इसे 1653 में जीता था, लेकिन मुगलों ने फिर छीन लिया।
कैसे पहुँचें?
हवाई मार्ग: औरंगाबाद हवाई अड्डा (15 किमी)।
रेल/सड़क: औरंगाबाद से बस या टैक्सी उपलब्ध।
दौलताबाद किला न सिर्फ एक सैन्य चमत्कार है
बल्कि भारतीय इतिहास की गौरवगाथा भी है।
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